एक तरफ जहां कृषि क़ानूनों के खिलाफ किसानों का आंदोलन लगातार जारी है. तो वहीं दूसरी तरफ सुप्रीम कोर्ट में भी किसान आंदोलन को लेकर सरकार और किसान दोनों की तरफ से बात राखी जा रही है. इसी बीच केंद्र सरकार द्वारा पास किए गए तीनों कृषि कानून पर सुप्रीम कोर्ट (Supreme court Hold farm laws) ने रोक लगा दी है. सर्वोच्च अदालत ने मंगलवार को ये फैसला सुनाया, साथ ही अब इस मसले को सुलझाने के लिए कमेटी का गठन कर दिया गया है. कोर्ट द्वारा सुनाये गए इस सुप्रीम फैसले पर अब किसान नेताओं की भी प्रतिक्रिया आ रही है. वहीं अब हर तरफ इस खबर की चर्चा हो रही है.
कोर्ट द्वारा जिस कमेटी का गठन किया गया है उसमे कुल चार लोग शामिल होंगे, जिनमें भारतीय किसान यूनियन के जितेंद्र सिंह मान, डॉ. प्रमोद कुमार जोशी, अशोक गुलाटी (कृषि विशेषज्ञ) और अनिल शेतकारी शामिल हैं.
चीफ जस्टिस ने कहीं यह बड़ी बातें
अब हम इस बात पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं कि जीवन और संपत्ति के विना’श को कैसे रोका जाए।हम कानून को निलंबित करने की योजना बनाते हैं।हम एक समिति बनाना चाहते हैं। यह हमें एक रिपोर्ट सौंपेगा। समस्या के समाधान में रुचि रखने वालों को समिति के समक्ष जाना चाहिए।
हमें बताया गया है कि कि 400 किसान संगठन हैं। जिस तरह से किसानों के संगठन अलग अलग हैं उसी तरह से राय भी जुदा है। सभी पक्षों को समझने के लिए समिति बना रहे हैं कि वास्तविक समस्या क्या है। बार के सदस्यों से न्यायिक प्रक्रिया के प्रति कुछ निष्ठा दिखाने की उम्मीद की जाती है। यह राजनीति का मैदान नहीं बल्कि अदालत हैदवे ने बहुत स्पष्ट रूप से कहा कि उनके ग्राहक 26 जनवरी को एक ट्रैक्टर रैली नहीं निकालेंगे। यह वही है जो बातचीत के लिए सही माहौल बनाने की उम्मीद है.. इस तरह के सहयोग की उम्मीद है।
कोर्ट ने कहा- हम कानून को रद्द भी कर सकते हैं
रिपोर्ट्स के मुताबिक, चीफ जस्टिस की ओर से अटॉर्नी जनरल से कहा गया है कि वो प्रदर्शन में किसी भी बैन संगठन के शामिल होने को लेकर हलफनामा दायर करें। सांसद तिरुचि सीवा की ओर से जब वकील ने कानून रद्द करने की अपील की तो चीफ जस्टिस ने कहा कि हमें कहा गया है कि साउथ में कानून को समर्थन मिल रहा है. जिसपर वकील ने कहा कि दक्षिण में हर रोज इनके खिलाफ रैली हो रही हैं. चीफ जस्टिस ने कहा कि वो कानून सस्पेंड करने को तैयार हैं, लेकिन बिना किसी लक्ष्य के नहीं.
याचिककर्ता ने क्या कहा
याचिकाकर्ता की ओर से कहा गया कि प्रदर्शन में सोशल डिस्टेंसिंग का पालन नहीं हो रहा है, ऐसे में बड़ी जगह मिलनी चाहिए. वकील ने रामलीला मैदान का नाम सुझाया, तो अदालत ने पूछा कि क्या आपने इसके लिए अर्जी मांगी थी.
अदालत ने किसान संगठनों को भी नोटिस जारी किया है, जिसमें उन्होंने दिल्ली पुलिस से ट्रैक्टर रैली निकालने की परमिशन मांगी है. सुप्रीम कोर्ट में अब ये मामला सोमवार को सुना जाएगा.
सरकार ने कोर्ट के सामने रखी अपनी बात
केंद्र ने फैसले से पहले कोर्ट में अपना हलफनामा दिया, जिसमें सफाई दी गई कि कानून बनने से पहले व्यापक स्तर पर चर्चा की गई थी. सरकार ने कहा कि कानून जल्दबाजी में नहीं बने हैं बल्कि ये तो दो दशकों के विचार-विमर्श का परिणाम है.
हलफनामे में कहा गया कि देश के किसान खुश हैं क्योंकि उन्हें अपनी फसलें बेचने के लिए मौजूदा विकल्प के साथ एक अतिरिक्त विकल्प भी दिया गया है. इससे साफ है कि किसानों का कोई भी निहित अधिकार इन कानूनों के जरिए छी’ना नहीं जा रहा है.