कालीन भैया के नाम से मशहूर अभिनेता पंकज त्रिपाठी आज फिल्म की सफलता की गारंटी बन चुके हैं. पंकज का नाम सुनकर ही दर्शक फिल्म देखने के लिए सिनेमा घर पहुंच जाते हैं. या बात हो वेब सीरीज की तो वहां पर भी उनका पूरा भौ’का’ल कायम है. इन दिनों उनकी फिल्म बच्चन पांडेय सिनेमा घरों में हैं जिसमे उनके किरदार को काफी पसंद किया जा रहा है.
लेकिन क्या आप जानते हैं कि, अभिनेता आज जिस मुकाम पर हैं वहां तक पहुंचने के लिए उन्हें कितना संघर्ष और समय लगा है.
आज हम आपको पंकज त्रिपाठी के करियर की सफलता की कहानी बताने की कोशिश करते हैं. यह कहानी आपको भी काफी मोटिवेट करेगी और करियर में आगे बढ़ने का जोश बढ़ाएगी.
सादा जीवन उच्च विचार
गौरतलब है कि, कालीन भैया यानी पंकज फिल्मों में अपने किरदार की तरह ही बेहद साधा जीवन जीते हैं. जिस तरह से आप उनको फिल्म और वेब सीरीज में देखते हैं. वह असल जिंदगी में भी उतने ही सरल स्वभाव और साधा जीवन जीने वाले इंसना हैं.
आज पंकज भैया इंडस्ट्री का जाना माना चेहरा बन गए हो. लेकिन असल जिंदगी में वह भी एक सादा सिंपल इंसान है. बिहार के रहने वाले पंकज के माता-पिता अभी भी गांव में ही रहते हैं.
एक इंटरव्यू में उन्होंने बताया था कि बिहार में जहां उनके माता-पिता रहते हैं. वहां अभी भी टीवी नहीं है ऐसा नहीं है, ऐसा नहीं है कि वह टीवी खरीद नहीं सकते. टीवी ना होने की वजह यह है कि पंकज के माता पिता को टीवी पसंद नहीं है.
लंबे संघर्ष के बाद हाथ लगी सफलता
बता दें कि, पंकज ने सिनेमा की दुनिया में पहचान बनाने के लिए काफी लंबा संघर्ष किया।की फ़िल्में करने के बाद भी उन्हें कुछ खास पहचान नहीं मिल पाई थी. इसके बाद अनुराग कश्यप की फिल्म ‘गैं’ग्स ऑफ वासेपुर’ आई जिसने उनको एक अलग पहचान दिला दी.
इस फिल्म के बाद से पंकज हर किसी के चहेते बनते चले गए. अब तक अभिनेता करीब 40 फिल्मों और टीवी सीरियल में काम कर चुके हैं. बरेली की बर्फी, स्त्री, न्यूटन सहित मिर्जापुर और से’क्रे’ट गेम जैसी वेब सीरीज में अपनी अदाकारी का लोहा मनवा चुके हैं.
खर्चा चलाने के लिए होटल में करते थे काम
एक बार खुद पंकज त्रिपाठी ने बताया था कि पहली बार एक दोस्त के कहने पर में नाटक देखने गया. उसके बाद लगातार नाटक का दर्शक बन गया. तब मैंने सोचा कि मुझे भी यही करना चाहिए यह लोगों को रुलाते भी हैं और हंसाने का काम भी करते हैं.
1995 से 2001 तक पटना में नाटक का सिलसिला लगातार चलता रहा. भीष्म साहनी के एक नाटक में काम किया जिसमें मैंने एक चो’र की छोटी सी भूमिका निभाई थी. इस किरदार में लोगों ने मुझे काफी अधिक पसंद किया. लोगों के साथ ही क्रिटिक्स ने भी काफी सराहना की और अखबार में लिखा गया कि उस कलाकार में काफी संभावना है.
इतना ही नहीं पंकज बताते हैं कि नाटक से तो पेट नहीं भरता था क्योंकि वहां से उतना खर्चा नहीं मिल पाता था. इसलिए वह पटना में रहने के दौरान एक होटल में किचन सुपरवाइजर की नौकरी करने लगे थे.
छात्र राजनीति से पहले संघ की साखा में जाते थे पंकज
वहीं पंकज त्रिपाठी के छात्र करियर में एक दिलचस्प किस्सा भी है जब वह एक तरह से राजनीति से भी जुड़े रहे. अभिनेता पंकज ने राज्यसभा टीवी के कार्यक्रम गुफ्तगू में अपने जीवन से जुड़ी कई बातों के राज खोले थे. उन्होंने कहा कि “मैं अपने गांव में कुछ दिन शाखा पर जाता था. लेकिन वहां राजनीति की ट्रेनिंग नहीं दी गई.
एक नेतृत्व क्षमता मेरे अंदर गांव से ही थी, खेल में आगे रहता था. पढ़ने के लिए पटना आया लेकिन पढ़ने में मन नहीं लगा, तो छात्र राजनीति करने लगा. मैं एक साधारण छात्र नेता था. लेकिन इतना जरूर था कि मैं कुछ हास्य व्यंग और चुटकुले सुनाकर भीड़ इकट्ठा कर लेता था. ताकि इसके बाद नेताजी आए और अपना भाषण शुरू कर दें.
छात्र राजनीति के दौरान जेल भी गए
आपको यह जानकर हैरानी होगी कि, अपने छात्र राजनीतिक करियर के दौरान उनको जे’ल भी जाना पड़ गया था. वह बताते हैं- तीन-चार साल मैंने छात्र राजनीति की विद्यार्थी परिषद में रहते हुए एक बार जे’ल भी गया.
2001 में लिया नैशनल स्कूल ऑफ़ ड्रामा में एडमिशन
इसके बाद साल 2001 में पंकज त्रिपाठी ने दिल्ली के नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा में एडमिशन लिया और 4 साल यहां रहे. यहां रहने के बाद छोटे विज्ञापन में काम करना शुरू किया और फिर धीरे-धीरे फिल्मों में काम मिलना शुरू हो गया.
बता दें कि, पंकज अपने परिवार पहले सदस्य थे जिसने फिल्म इंडस्ट्री की ओर रुख किया था. कहीं कोई पहचान नहीं थी इसलिए संघर्ष थोड़ा लंबा चला. जिंदगी में कई सारे उतार चढ़ाव आए और फिर अपने अभिनय को और ज्यादा पक्का कर लिया. आज तो पंकज एक बड़े स्टार हैं जिनको बच्चा भी जनता है और उनके अभिनय का दीवाना है.