पंकज त्रिपाठी बॉलीवुड के एक ऐसे अभिनेता हैं जो हर अभिनय में अपनी एक अलग छाप छोड़ने के लिए जाने जाते हैं। पंकज त्रिपाठी (Pankaj tripathi) की एक्टिंग जितनी शानदार है उनकी जिंदगी का सफर भी उतना ही फिल्मी रहा है। संघ की पाठशाला से निकलकर छात्र राजनीति में रहते समय जे’ल जाने के बाद तक अभिनेता बनने तक उनके जीवन में कई पड़ाव आये हैं.
तो आइये आज हम आपको उनके जीवन के कुछ ऐसे पहलुओं के बारे में बताते हैं जिसको जानकर आपकी आंखें नम हो जाएंगी।
छात्र राजनीति से पहले संघ की साखा में जाते थे पंकज
अभिनेता पंकज ने राज्यसभा टीवी के कार्यक्रम गुफ्तगू में अपने जीवन से जुड़ी कई बातों के राज खोले थे। उन्होंने कहा कि “मैं अपने गांव में कुछ दिन शाखा पर जाता था। लेकिन वहां राजनीति की ट्रेनिंग नहीं दी गई। एक नेतृत्व क्षमता मेरे अंदर गांव से ही थी, खेल में आगे रहता था. पढ़ने के लिए पटना आया लेकिन पढ़ने में मन नहीं लगा, तो छात्र राजनीति करने लगा। मैं एक साधारण छात्र नेता था। लेकिन इतना जरूर था कि मैं कुछ हास्य व्यंग और चुटकुले सुनाकर भीड़ इकट्ठा कर लेता था। ताकि इसके बाद नेताजी आए और अपना भाषण शुरू कर दें. तीन-चार साल मैंने छात्र राजनीति की विद्यार्थी परिषद में रहते हुए एक बार जे’ल भी गया। लेकिन देखा कि यहां सामाजिक हित नहीं है, मुझे लगा मैं कितना दिन इस तरह की चमचागिरी कर लूंगा। मेरा मन हट गया। लेकिन अब तो नेताजी का मतलब ही बदल गया। लोग यदि कहें कि मेरा बेटा नेता है तो लोग सही दृष्टि से नहीं देखते।
जीवन यापन करने के लिए होटल में भी किया काम
पंकज त्रिपाठी ने अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहा कि पहली बार एक दोस्त के कहने पर में नाटक देखने गया। उसके बाद लगातार नाटक का दर्शक बन गया। तब मैंने सोचा कि मुझे भी यही करना चाहिए यह लोगों को रुलाते भी हैं और हंसाने का काम भी करते हैं। 1995 से 2001 तक पटना में नाटक का सिलसिला लगातार चलता रहा। भीष्म साहनी के एक नाटक में काम किया जिसमें मैंने एक चो’र की छोटी सी भूमिका निभाई थी. इस किरदार में लोगों ने मुझे काफी अधिक पसंद किया। लोगों के साथ ही क्रिटिक्स ने भी काफी सराहना की और अखबार में लिखा गया कि उस कलाकार में काफी संभावना है। इतना ही नहीं अपनी बात को और आगे बढ़ाते हुए पंकज बताते हैं कि नाटक से तो पेट नहीं भरता। इसलिए मैं पटना में रहने के दौरान होटल मौर्या में किचन सुपरवाइजर की नौकरी करने लगा। कई बार थियेटर करने को लेकर मैनेजमेंट से डांट भी खानी पड़ी। इसके बावजूद मैंने अपने काम को लगातार किया।
साल 2001 में नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा में में चला गया 4 साल यहां रहा। यहां के बाद मैंने छोटे-मोटे ऐड में काम करना शुरू किया और फिर धीरे-धीरे मुझे फिल्मों में काम मिलना शुरू हो गया। परिवार का पहला सदस्य था जिसने फिल्म इंडस्ट्री की ओर रुख किया था। कहीं कोई पहचान नहीं थी इसलिए संघर्ष थोड़ा लंबा चला। जिंदगी में कई सारे उतार चढ़ाव आए और मैंने अपने अभिनय को और ज्यादा पक्का कर लिया।